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मीराबाई - नाथ तुम जानतहो सब घटकी

(30)

                                   नाथ तुम जानतहो सब घटकी

               नाथ तुम जानतहो सब घटकी। मीरा भक्ति करे प्रगटकी॥
                      ध्यान धरी प्रभु मीरा संभारे पूजा करे अट पटकी।
                   शालिग्राम कूं चंदन चढत है भाल तिलक बिच बिंदकी
                         राम मंदिरमें मीराबाई नाचे ताल बजावे चपटी।
                       पाऊ में नेपुर रुमझुम बाजे। लाज संभार गुंगटकी॥
                     झेर कटोरा राणाजिये भेज्या संत संगत मीरा अटकी।
                        ले चरणामृत मिराये पिधुं होग‍इ अमृत बटकी॥
                      सुरत डोरी पर मीरा नाचे शिरपें घडा उपर मटकी।
                  मीरा के प्रभु गिरिधर नागर सुरति लगी जै श्री नट की॥

                                                  - मीराबाई

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मीराबाई - दरस बिनु दूखण लागे नैन

(29)

 दरस बिनु दूखण लागे नैन

दरस बिनु दूखण लागे नैन।
जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन॥

सबद सुणत मेरी छतियां कांपे, मीठे लागे बैन।
बिरह कथा कांसूं कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन॥

कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
मीरा के प्रभू कब र मिलोगे, दुखमेटण सुखदैन॥

- मीराबाई

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मीराबाई - तुम बिन मेरी कौन खबर ले

(28)


(1)

तुम बिन मेरी कौन खबर ले 


तुम बिन मेरी कौन खबर ले। गोवर्धन गिरिधारी रे॥
मोर मुकुट  पीतांबर सोभे । कुंडलकी छबी न्यारी रे॥
भरी सभा में द्रौपदी ठारी। राखो लाज हमारी रे॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारी रे॥ 





(2)



तुम बिन मेरी कौन खबर ले। गोवर्धन गिरिधारी रे॥
लटपट पाग केसरिया जामा गले बिच हार हजारी रे
मोर मुकुट  पीतांबर  सोहे। कुंडल की छबी न्यारी रे॥ 
वृंदावन में धेनु चरावै बंसी बजावै गिरिधारी रे
वृंदावन में रास रची है सहस्त्र गोपियो गिरिधारी रे 
भरी सभा  में द्रौपदी ठाड़ी। राखो लाज हमारी रे॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारी रे॥
  - मीराबाई

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मीराबाई - झूलत राधा संग

(27)


                                             झूलत राधा संग
 
                           झूलत राधा संग। गिरिधर झूलत राधा संग॥
                        अबिर गुलालकी धूम मचाई। भर पिचकारी रंग॥
                           लाल भई बिंद्रावन जमुना। केशर चूवत रंग॥
                      नाचत ताल आधार सुरभर। धिमी धिमी बाजे मृदंग॥
                          मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल कू दंग॥

                                                   - मीराबाई

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मीराबाई - राम-नाम-रस पीजै

(26)

राम-नाम-रस पीजै

राम-नाम-रस पीजै।

मनवा! राम-नाम-रस पीजै।

तजि कुसंग सतसंग बैठि नित, हरि-चर्चा सुणि लीजै।

काम क्रोध मद मोह लोभ कूं, चित से बाहय दीजै।

मीरा के प्रभु गिरधर नागर, ता के रंग में भीजै।

-  मीराबाई

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मीराबाई - होरी खेलत हैं गिरधारी

(25)

होरी खेलत हैं गिरधारी

होरी खेलत हैं गिरधारी।
मुरली चंग बजत डफ न्यारो।
संग जुबती ब्रजनारी।।
चंदन केसर छिड़कत मोहन
अपने हाथ बिहारी।
भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग
स्यामा प्राण पियारी।
गावत चार धमार राग तहं
दै दै कल करतारी।।
फाग जु खेलत रसिक सांवरो
बाढ्यौ रस ब्रज भारी।
मीरा कूं प्रभु गिरधर मिलिया
मोहनलाल बिहारी।।

- मीराबाई


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मीराबाई - साधुकी संगत पाईवो

(24)

साधुकी संगत पाईवो

साधुकी संगत पाईवो। ज्याकी पुरन कमाई वो॥
पिया नामदेव और कबीरा। चौथी मिराबाई वो॥
केवल कुवा नामक दासा। सेना जातका नाई वो॥
धनाभगत रोहिदास चह्यारा। सजना जात कसाईवो॥
त्रिलोचन घर रहत ब्रीतिया। कर्मा खिचडी खाईवो॥
भिल्लणीके बेर सुदामाके चावल। रुची रुची भोग लगाईरे॥
रंका बंका सूरदास भाईं। बिदुरकी भाजी खाईरे॥
ध्रुव प्रल्हाद और बिभीषण। उनकी क्या भलाईवो॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। ज्योतीमें ज्योती लगाईवो॥

- मीराबाई

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मीराबाई - मैं गिरधर के घर जाऊँ

(23)

मैं गिरधर के घर जाऊँ

मैं गिरधर के घर जाऊँ।
गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम देखत रूप लुभाऊँ।।
 
रैण पड़ै तबही उठ जाऊँ भोर भये उठिआऊँ।
रैन दिना वाके संग खेलूं ज्यूं त्यूं ताहि रिझाऊँ।।
 
जो पहिरावै सोई पहिरूं जो दे सोई खाऊँ।
मेरी उणकी प्रीति पुराणी उण बिन पल न रहाऊँ।

जहाँ बैठावें तितही बैठूं बेचै तो बिक जाऊँ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर बार बार बलि जाऊँ।।

- मीराबाई

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मीराबाई - हे मेरो मनमोहना

(22)

हे मेरो मनमोहना


हे मेरो मनमोहना आयो नहीं सखी री।
 
कैं कहुँ काज किया संतन का।
कैं कहुँ गैल भुलावना।।

हे मेरो मनमोहना।

कहा करूँ कित जाऊँ मेरी सजनी।
लाग्यो है बिरह सतावना।।
हे मेरो मनमोहना।।

मीरा दासी दरसण प्यासी।
हरि-चरणां चित लावना।।

हे मेरो मनमोहना।।


- मीराबाई

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मीराबाई - मैं तो सांवरे के रंग राची

(21)

मैं तो सांवरे के रंग राची


मैं तो सांवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।।
गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची।
गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूँ बांची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
मीरा श्रीगिरधरन लालसूँ, भगति रसीली जांची।।


- मीराबाई

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मीराबाई - बसो मोरे नैनन में

(20)

बसो मोरे नैनन में

बसो मोरे नैनन में नंदलाल।
मोहनी मूरति सांवरि सूरति, नैणा बने बिसाल।
अधर सुधारस मुरली राजत, उर बैजंती-माल।।
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल।।

- मीराबाई


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मीराबाई - स्याम! मने चाकर राखो जी

(19)

स्याम! मने चाकर राखो जी

स्याम! मने चाकर राखो जी
गिरधारी लाला! चाकर राखो जी।

चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दरसण पासूं।
ब्रिंदाबन की कुंजगलिन में तेरी लीला गासूं।।

चाकरी में दरसण पाऊँ सुमिरण पाऊँ खरची।
भाव भगति जागीरी पाऊँ, तीनूं बाता सरसी।।

मोर मुकुट पीताम्बर सोहै, गल बैजंती माला।
ब्रिंदाबन में धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला।।

हरे हरे नित बाग लगाऊँ, बिच बिच राखूं क्यारी।
सांवरिया के दरसण पाऊँ, पहर कुसुम्मी सारी।

जोगी आया जोग करणकूं, तप करणे संन्यासी।
हरी भजनकूं साधू आया ब्रिंदाबन के बासी।।

मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा।
आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें, प्रेमनदी के तीरा।।


- मीराबाई

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मीराबाई - कौन भरे जल जमुना।

(18)

कौन भरे जल जमुना।


कौन भरे जल जमुना। सखी कौन भरे जल जमुना   ॥
बन्सी बजावे मोहे लीनी। हरीसंग चली मन मोहना ॥
शाम हटेले बडे कवटाले। हर लाई सब ग्वालना ॥
कहे मीरा तुम रूप निहारो। तीन लोक प्रतिपालना ॥

- मीराबाई

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मीराबाई - गली तो चारों बंद हुई

(17)

गली तो चारों बंद हुई


गली तो चारों बंद हुई, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय।

ऊंची नीची राह लपटीली, पांव नहीं ठहराय।
सोच सोच पग धरूं जतनसे, बार बार डिग जाय॥
ऊंचा नीचा महल पियाका म्हांसूं चढ़्‌यो न जाय।
पिया दूर पंथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय॥
कोस कोस पर पहरा बैठ्या, पैंड़ पैंड़ बटमार।
है बिधना, कैसी रच दीनी दूर बसायो म्हांरो गांव॥
मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय।
जुगन जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय॥


- मीराबाई


* लपटीली = रपटीली
* म्हांरौ = मेरा
* झीणो = सूक्ष्म
* सुरत = याद करने की शक्ति
* झकोला = झोंका
* पैंड़ = डग
* गाम = गांव

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मीराबाई - हरि तुम हरो जन की भीर।

(16)

हरि तुम हरो जन की भीर


हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढायो चीर॥

भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर।
हिरणकश्यपु मार दीन्हों, धरयो नाहिंन धीर॥

बूडते गजराज राखे, कियो बाहर नीर।
दासि 'मीरा लाल गिरिधर, दु:ख जहाँ तहँ पीर॥

- मीराबाई

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मीराबाई - मोरी लागी लटक

(15)

मोरी लागी लटक

मोरी लागी लटक गुरु चरणकी॥ध्रु०॥
चरन बिना मुज कछु नही भावे। झूंठ माया सब सपनकी॥१॥
भवसागर सब सुख गयी है। फिकीर नही मुज तरुणोनकी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। उलट भयी मोरे नयननकी॥३॥

- मीराबाई

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मीराबाई - मैं बैरागण हूंगी

(14)

 मैं बैरागण हूंगी

बाला मैं बैरागण हूंगी।
जिन भेषां म्हारो साहिब रीझे, सोही भेष धरूंगी।

सील संतोष धरूँ घट भीतर, समता पकड़ रहूंगी।
जाको नाम निरंजन कहिये, ताको ध्यान धरूंगी।
 
गुरुके ग्यान रंगू तन कपड़ा, मन मुद्रा पैरूंगी।
प्रेम पीतसूँ हरिगुण गाऊँ, चरणन लिपट रहूंगी।

या तन की मैं करूँ कीगरी, रसना नाम कहूंगी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, साधां संग रहूंगी।

- मीराबाई

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मीराबाई - मैनें गोविंद लीन्हो मोल

(13)

मैनें गोविंद लीन्हो मोल

माई मैनें गोविंद लीन्हो मोल॥ध्रु०॥
कोई कहे हलका कोई कहे भारी। लियो है तराजू तोल॥ मा०॥१॥
कोई कहे ससता कोई कहे महेंगा। कोई कहे अनमोल॥ मा०॥२॥
बृंदाबन की कुंज गलिन में। लियो बजंता ढोल॥ मा०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। पुरब जनम के बोल॥ मा०॥४॥

- मीराबाई

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मीराबाई - मैं तो लियो गोविंदो मोल

(12)

मैं तो लियो गोविंदो मोल

माई री! मैं तो लियो गोविंदो मोल।
कोई कहै छानै, कोई कहै छुपकै, लियो री बजंता ढोल।
कोई कहै मुहंघो, कोई कहै सुहंगो, लियो री तराजू तोल।
कोई कहै कारो, कोई कहै गोरो, लियो री अमोलिक मोल।
या ही कूं सब जाणत है, लियो री आँखी खोल।
मीरा कूं प्रभु दरसण दीज्योई, पूरब जनम को कोल।

- मीराबाई

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मीराबाई - नटवर नागर नन्दा

(11)

नटवर नागर नन्दा

नटवर नागर नन्दा, भजो रे मन गोविन्दा,
नटवर नागर नन्दा, भजो रे मन गोविन्दा ।

श्याम सुन्दर मुख चन्दा, भजो रे मन गोविन्दा,
तू ही नटवर, तू ही नागर, तू ही बाल मुकुन्दा ।

 
सब देवन में कृष्ण बड़े हैं, ज्यूं तारा बिच चंदा,
सब सखियन में राधा जी बड़ी हैं, ज्यूं नदियन बिच गंगा।

ध्रुव तारे, प्रहलाद उबारे, नरसिंह रूप धरंता ,
कालीदह में नाग ज्यों नाथो, फण-फण निरत करंता ।

वृन्दावन में रास रचायो, नाचत बाल मुकुन्दा,
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, काटो जम का फंदा ।।

- मीराबाई

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