Old bollywood movies; old bollwood songs

Watch old Bollywood movies, Listen old songs.... click here
Showing posts with label Siyaram Sharan Gupt. Show all posts
Showing posts with label Siyaram Sharan Gupt. Show all posts

सियाराम शरण गुप्त - भेंट

(5)

 भेंट
   
करो नाथ स्वीकार आज इस हृदय-कुसुम को
करें और क्या भेंट राजराजेश्वर तुमको?
सौरभ की है कमी कहाँ पर उसको पावें?
सुन्दरता है नहीं कहाँ से वह भी लावें?

नहीं आपके योग्य भेंट यह ध्रुव निश्चय है
पर जैसी है आज वही सम्मुख सविनय है।
इष्ट नहीं यह करो कि धारण इसे हृदय पर।
निज मंदिर में ठौर कहीं इसको दो प्रभुवर।

तब पद-छाया अकस्मात जिस दिन पावेगा
तुच्छ कुसुम यह राज कुसुम से बढ जावेगा।
अंतहीन सुवसंत इसे विकसित कर देगा
निरुपमेय सौन्दर्य-सुरभि इसमें भर देगा।

उस दिन गर्व समेत कह सकेंगे हम तुमसे-
क्या अब भी है अरुचि तुम्हें इस वन्य कुसुम से?
                  
- सियाराम शरण गुप्त

**************************************************

सियाराम शरण गुप्त - शरणागत

(4)

शरणागत 
   
क्षुद्र सी हमारी नाव चारो ओर है समुद्व
वायु के झकोरे उग्र रुद्र रूप धारे हैं।
शीघ्र निगल जाने को नौका के चारो ओर
सिंधु की तरंगे सौ-सौ जिव्हाएँ पसारे हैं।

हारे सभी भाँति हम तब तो तुम्हारे बिना
झूठे ज्ञात होते और सबके सहारे हैं।
और क्या कहें अहो! डुबा दो या लगा दो पार
चाहे जो करो शरण्य! शरण तुम्हारे हैं!

सुनसान कानन भयावह है चारो ओर
दूर दूर साथी सभी हो रहे हमारे हैं।
काँटे बिखरे हैं कहाँ जावें कहाँ पावें ठौर
छूट रहे पैरों से रुधिर के फुहारे हैं।

आ गया कराल रात्रिकाल हैं अकेले यहाँ
हिंस्त्र जंतुओं के चिन्ह जा रहे निहारे हैं।
किसको पुकारें यहाँ रो कर अरण्य बीच
चाहे जो करो शरण्य! शरण तुम्हारे हैं! 

- सियाराम शरण गुप्त 

*****************************************
 

सियाराम शरण गुप्त - प्यारे बापू

(3)

 प्यारे बापू

हम सब के थे प्यारे बापू
सारे जग से न्यारे बापू

जगमग-जगमग तारे बापू
भारत के उजियारे बापू

लगते तो थे दुबले बापू
थे ताक़त के पुतले बापू

नहीं कभी डरते थे बापू
जो कहते करते थे बापू

सदा सत्य अपनाते बापू
सबको गले लगाते बापू

हम हैं एक सिखाते बापू
सच्ची राह दिखाते बापू

चरखा खादी लाए बापू
हैं आज़ादी लाए बापू

कभी न हिम्मत हारे बापू
आँखों के थे तारे बापू

- सियाराम शरण गुप्त 
  
         *****************************          

सियाराम शरण गुप्त - एक बूँद

(2)

एक बूँद

"मैं हूँ कृपण कहाँ आई तू
ले कर जीवन भर की प्यास?
दे सकता हूँ एक बूँद मैं
जा तू अन्य धनी के पास।"

"बस बस एक बूँद ही दे दे!"
कहा तृषार्ता ने खिलकर-
"किसके पास कहाँ जाऊँ अब
तुझ-से दानी से मिलकर?

सिक्ता की कंटक शैय्या पर
इसी बूँद की आशा में
आतप के पंचाग्नि ताप से
डिगी नहीं हूँ मैं तिल भर।

मेरे पुलक-स्वाति के घन हे।
पूरा कर मेरा अभिलाष
अधिक नहीं बस इस सीपी को
एक बूँद की ही है प्यास।"
              
- सियाराम शरण गुप्त

*********************************************

सियाराम शरण गुप्त - परीक्षा

(1)

परीक्षा

मैं हूँ एक अनेक शत्रु हैं सम्मुख मेरे
क्रोध लोभ मोहादि सदा रहते हैं घेरे।
परमपिता इस भाँति कहाँ मुझको ला पटका
जहाँ प्रतिक्षण बना पराभव का है खटका।

अथवा निर्बल समझ अनुग्रह है दिखलाया
करने को बलवृद्धि अखाडे में पहुँचाया
सबल बनूँ मैं घात और प्रतिघात सहन कर
ऊपर कुछ चढ सकूँ और दुख भार वहन कर।

इस कठिन परीक्षा कार्य में
हो जाऊँ उत्तीर्ण जब
कर देना मानस सद्म में
शांति सुगंधि विकीर्ण तब।
              
- सियाराम शरण गुप्त

*********************************************