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श्यामनारायण पाण्डेय - चेतक की वीरता

(2)


चेतक की वीरता
 
रण बीच चौकड़ी भर-भर कर 
चेतक बन गया निराला था 
राणा प्रताप के घोड़े से 
पड़ गया हवा का पाला था

 गिरता न कभी चेतक तन पर 
राणा प्रताप का कोड़ा था 
वह दौड़ रहा अरि-मस्तक पर 
वह आसमान का घोड़ा था

जो तनिक हवा से बाग हिली 
लेकर सवार उड़ जाता था 
राणा की पुतली फिरी नहीं 
तब तक चेतक मुड़ जाता था


कौशल दिखलाया चालों में
उड़ गया भयानक भालों में
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौड़ा कर वालों में


है यहीं रहा अब यहाँ नहीं 
वह वहीं रहा है वहाँ नहीं 
थी जगह न कोई जहाँ नहीं 
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं


बढते नद सा वह लहर गया 
वह गया गया फिर ठहर गया 
बिकराल बज्रमय बादल सा 
अरि की सेना पर घहर गया

भाला गिर गया गिरा निषंग
हय टापों से खन गया अंग 
बैरी समाज रह गया दंग 
घोड़े का ऐसा देख रंग

-     श्यामनारायण पाण्डेय

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श्यामनारायण पाण्डेय - राणा प्रताप की तलवार

(1)

राणा प्रताप की तलवार


चढ़ चेतक पर तलवार उठा,
रखता था भूतल पानी को। 
राणा प्रताप सिर काट काट, 
करता था सफल जवानी को॥

 
कलकल बहती थी रणगंगा, 
अरिदल को डूब नहाने को। 
तलवार वीर की नाव बनी, 
चटपट उस पार लगाने को॥

 
वैरी दल को ललकार गिरी, 
वह नागिन सी फुफकार गिरी। 
था शोर मौत से बचो बचो, 
तलवार गिरी तलवार गिरी॥

 
पैदल, हयदल, गजदल में, 
छप छप करती वह निकल गई। 
क्षण कहाँ गई कुछ पता न फिर, 
देखो चम-चम वह निकल गई॥

 
क्षण इधर गई क्षण उधर गई, 
क्षण चढ़ी बाढ़ सी उतर गई। 
था प्रलय चमकती जिधर गई, 
क्षण शोर हो गया किधर गई॥

 
लहराती थी सिर काट काट, 
बलखाती थी भू पाट पाट। 
बिखराती अवयव बाट बाट, 
तनती थी लोहू चाट चाट॥

 
क्षण भीषण हलचल मचा मचा, 
राणा कर की तलवार बढ़ी। 
था शोर रक्त पीने को यह, 
रण-चंडी जीभ पसार बढ़ी॥

-  श्यामनारायण पाण्डेय

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