असद भोपाली – इश्क़ को जब हुस्न से नज़रें मिलाना आ गया
(5)
इश्क़ को जब हुस्न से नज़रें मिलाना आ
गया
इश्क़ को जब हुस्न से नज़रें मिलाना आ
गया
ख़ुद-ब-ख़ुद
घबरा के क़दमों में ज़माना आ गया
जब
ख़याल-ए-यार दिल में वालेहाना आ गया
लौट
कर गुज़रा हुआ काफ़िर ज़माना आ गया
ख़ुश्क
आँखें फीकी फीकी सी हँसी नज़रों में यास
कोई
देखे अब मुझे आँसू बहाना आ गया
ग़ुँचा
ओ गुल माह ओ अंजुम सब के सब बेकार थे
आप
क्या आए के फिर मौसम सुहाना आ गया
मैं
भी देखूँ अब तेरा ज़ौक़-ए-जुनून-ए-बंदगी
ले
जबीन-ए-शौक़ उन का आस्ताना आ गया
हुस्न-ए-काफ़िर
हो गया आमादा-ए-तर्क-ए-जफ़ा
फिर
'असद'
मेरी
तबाही का ज़माना आ गया
- असद भोपाली
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