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असद भोपाली – जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए

(6)


जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए


जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए
बारहा दिल ने ये महसूस किया तुम आए

ऐसे इक़रार में इंकार के सौ पहलू हैं
वो तो कहिए के लबों पे न तबस्सुम आए

न वो आवाज़ में रस है न वो लहजे में खनक
कैसे कलियों को तेरा तर्ज़-ए-तकल्लुम आए

बारहा ये भी हुआ अंजुमन-ए-नाज़ से हम
सूरत-ए-मौज उठे मिस्ल-ए-तलातुम आए

ऐ मेरे वादा-शिकन एक न आने से तेरे
दिल को बहकाने कई तल्ख़ तवह्हुम आए


- असद  भोपाली


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