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अकबर इलाहाबादी - हंगामा है क्यूँ बरपा

(5)


हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है


हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है

ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़   की ये बातें हैं
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है

उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना
मक़सूद   है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है

वां   दिल में कि दो सदमे,यां  जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है

हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही  से
हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है

सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत   के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है
 
-    अकबर इलाहाबादी


शब्दार्थ:
1.     वाइज़  =   धर्मोपदेशक
2.     मक़सूद =  मनोरथ
3.      वां  =  वहाँ
4.     यां    = यहाँ
5.    अनवर-ए-इलाही =  दैवी प्रकाश
6.    फ़ितरत   =  प्रकृति

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