(9)
हर मसर्रत
हर मसर्रत
एक बरबादशुदा ग़म है
हर ग़म
एक बरबादशुदा मसर्रत
और हर तारीक़ी
एक बरबादशुदा ग़म है
हर ग़म
एक बरबादशुदा मसर्रत
और हर तारीक़ी
एक तबाहशुदा रौशनी है
और हर रौशनी
और हर रौशनी
एक तबाहशुदा तारीक़ी
इसी तरह
हर हाल
एक फ़ना शुदा माज़ी
और हर माज़ी
एक फ़ना शुदा हाल
और हर माज़ी
एक फ़ना शुदा हाल
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