(2)
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे ,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे ,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से ,
स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति , उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने ,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी ,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सॉंसों की डोरी।
नीड़ न दो , चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो ,
लेकिन पंख दिए हैं , तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालों।
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे ,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे ,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से ,
स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति , उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने ,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी ,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सॉंसों की डोरी।
नीड़ न दो , चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो ,
लेकिन पंख दिए हैं , तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालों।
- शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
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