(3)
जो नर दुख में दुख नहिं मानै
जो नर दुख में दुख नहिं मानै।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके , कंचन माटी जानै।।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके , कंचन माटी जानै।।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके , लोभ-मोह अभिमाना।
हरष शोक तें रहै नियारो , नाहिं मान-अपमाना।।
आसा मनसा सकल त्यागि के , जग तें रहै निरासा।
काम , क्रोध जेहि परसे नाहीं, तेहि घट ब्रह्म निवासा।।
गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं , तिन्ह यह जुगुति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिंद सों , ज्यों पानी सों पानी।।
- गुरु नानकदेव
**************************************************
No comments:
Post a Comment