(2)
चेतक की वीरता
रण बीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणा प्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था
गिरता न कभी चेतक तन पर
जो तनिक हवा से बाग हिली
गिरता न कभी चेतक तन पर
राणा प्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरि-मस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड़ जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था
कौशल दिखलाया चालों में
उड़ गया भयानक भालों में
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौड़ा कर वालों में
उड़ गया भयानक भालों में
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौड़ा कर वालों में
है यहीं रहा अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा है वहाँ नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं
बढते नद सा वह लहर गया
वह गया गया फिर ठहर गया
बिकराल बज्रमय बादल सा
अरि की सेना पर घहर गया
भाला गिर गया गिरा निषंग
भाला गिर गया गिरा निषंग
हय टापों से खन गया अंग
बैरी समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग
- श्यामनारायण पाण्डेय
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