(1)
जब अपने पैरहन से ख़ुशबू तुम्हारी आई
जब अपने पैरहन से ख़ुशबू तुम्हारी आई
घबरा
के भूल बैठे हम शिकवा-ए-जुदाई
फ़ितरत
को ज़िद है शायद दुनिया-ए-रंग-ओ-बू से
काँटों
की उम्र आख़िर कलियों ने क्यूँ न पार्इ
अल्लाह
क्या हुआ है ज़ोम-ए-ख़ुद-एतमादी
कुछ
लोग दे रहे हैं हालात की दुहाई
ग़ुँचों
के दिल बजाए खिलने के शिक़ हुए हैं
अब
के बरस न जाने कैसी बहार आई
इस
ज़िंदगी का अब तुम जो चाहो नाम रख दो
जो
ज़िंदगी तुम्हारे जाने के बाद आई
घबरा के भूल बैठे हम शिकवा-ए-जुदाई
फ़ितरत को ज़िद है शायद दुनिया-ए-रंग-ओ-बू से
काँटों की उम्र आख़िर कलियों ने क्यूँ न पार्इ
अल्लाह क्या हुआ है ज़ोम-ए-ख़ुद-एतमादी
कुछ लोग दे रहे हैं हालात की दुहाई
ग़ुँचों के दिल बजाए खिलने के शिक़ हुए हैं
अब के बरस न जाने कैसी बहार आई
इस ज़िंदगी का अब तुम जो चाहो नाम रख दो
जो ज़िंदगी तुम्हारे जाने के बाद आई
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