(9)
किस को गुमाँ है अबके मेरे साथ तुम भी थे
किस को गुमाँ है अब के मेरे साथ तुम भी थे
हाय वो रोज़ो-शब के मेरे साथ तुम भी थे
यादश बख़ैर अहदे-गुज़िश्ता की सोहबतें
एक दौर था अजब के मेरे साथ तुम भी थे
बे-महरी-ए-हयात की शिद्दत के बावजूद
दिल मुतमईन था जब के मेरे साथ तुम भी थे
मैं और तकाबिले- ग़मे-दौराँ का हौसला
कुछ बन गया सबब के मेरे साथ तुम भी थे
इक ख़्वाब हो गई है रह-रस्मे- दोसती
एक वहम -सा है अब के मेरे साथ तुम भी थे
वो बज़्म मेरे दोस्त याद तो होगी तुम्हें "फराज़"
वो महफ़िले-तरब के मेरे साथ तुम भी थे
- अहमद फ़राज़
किस को गुमाँ है अब के मेरे साथ तुम भी थे
हाय वो रोज़ो-शब के मेरे साथ तुम भी थे
यादश बख़ैर अहदे-गुज़िश्ता की सोहबतें
एक दौर था अजब के मेरे साथ तुम भी थे
बे-महरी-ए-हयात की शिद्दत के बावजूद
दिल मुतमईन था जब के मेरे साथ तुम भी थे
मैं और तकाबिले- ग़मे-दौराँ का हौसला
कुछ बन गया सबब के मेरे साथ तुम भी थे
इक ख़्वाब हो गई है रह-रस्मे- दोसती
एक वहम -सा है अब के मेरे साथ तुम भी थे
वो बज़्म मेरे दोस्त याद तो होगी तुम्हें "फराज़"
वो महफ़िले-तरब के मेरे साथ तुम भी थे
- अहमद फ़राज़
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