(10)
वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से, जब रात का आँचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नग़में गाएगी
जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नग़में गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी
जिस सुबह की खातिर जुग जुग से, हम सब मर मर कर जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में, हम ज़हर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर, इक दिन तो करम फरमाएगी
जिस सुबह के अमृत की धुन में, हम ज़हर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर, इक दिन तो करम फरमाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी
माना कि अभी तेरे मेरे, अरमानों की कीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, इन्सानों की कीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज्ज़त जब झूठे, सिक्कों में ना तोली जाएगी
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, इन्सानों की कीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज्ज़त जब झूठे, सिक्कों में ना तोली जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी
दौलत के लिए जब औरत की, इस्मत को ना बेचा जाएगा
चाहत को ना कुचला जाएगा, इज्ज़त को ना बेचा जाएगा
अपनी काली करतूतों पर, जब ये दुनिया शरमाएगी
चाहत को ना कुचला जाएगा, इज्ज़त को ना बेचा जाएगा
अपनी काली करतूतों पर, जब ये दुनिया शरमाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी
बीतेंगे कभी तो दिन आखिर, भूख के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आखिर, दौलत के इजारादारी के
जब एक अनोखी दुनिया की, बुनियाद उठाई जाएगी
टूटेंगे कभी तो बुत आखिर, दौलत के इजारादारी के
जब एक अनोखी दुनिया की, बुनियाद उठाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी
मजबूर बुढ़ापा जब सूनी, राहों की धूल ना फांकेगा
मासूम लड़कपन जब गंदी, गलियों में भीख ना मांगेगा
हक़ मांगने वालों को जिस दिन, सूली ना दिखाई जाएगी
मासूम लड़कपन जब गंदी, गलियों में भीख ना मांगेगा
हक़ मांगने वालों को जिस दिन, सूली ना दिखाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी
फाक़ों की चिताओं पर जिस दिन, इन्साँ ना जलाए जाएंगे
सीने के धधकते दोज़ख़ में, अरमाँ ना जलाए जाएंगे
ये नरक से भी गंदी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जाएगी
सीने के धधकते दोज़ख़ में, अरमाँ ना जलाए जाएंगे
ये नरक से भी गंदी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी
जिस सुबह की खातिर जुग जुग से, हम सब मर मर कर जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में, हम ज़हर के प्याले पीते हैं
वो सुबह ना आए आज मगर, वो सुबह कभी तो आएगी
जिस सुबह के अमृत की धुन में, हम ज़हर के प्याले पीते हैं
वो सुबह ना आए आज मगर, वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी
-
साहिर
लुधियानवी
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