( 6 )
न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-गुबार हूँ
न तो मैं किसी का हबीब हूँ न तो मैं किसी का रक़ीब हूँ
जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ जो उजड़ गया वो दयार हूँ
मेरा रंग-रूप बिगड़ गया मेरा यार मुझसे बिछड़ गया
जो चमन फ़िज़ाँ में उजड़ गया मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ
पै फ़ातेहा कोई आए क्यों कोई चार फूल चढ़ाये क्यों
कोई आके शम्मा जलाये क्यों मैं वो बेकसी का मज़ार हूँ
मैं नहीं हूँ नग़मा-जाँ-निशाँ, मुझे सुनके कोई करेगा क्या
मैं बड़े बारोग की हूँ सदा मैं बड़ी दुःख की पुकार हूँ
- बहादुर शाह ज़फ़र
जो किसी के काम न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-गुबार हूँ
न तो मैं किसी का हबीब हूँ न तो मैं किसी का रक़ीब हूँ
जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ जो उजड़ गया वो दयार हूँ
मेरा रंग-रूप बिगड़ गया मेरा यार मुझसे बिछड़ गया
जो चमन फ़िज़ाँ में उजड़ गया मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ
पै फ़ातेहा कोई आए क्यों कोई चार फूल चढ़ाये क्यों
कोई आके शम्मा जलाये क्यों मैं वो बेकसी का मज़ार हूँ
मैं नहीं हूँ नग़मा-जाँ-निशाँ, मुझे सुनके कोई करेगा क्या
मैं बड़े बारोग की हूँ सदा मैं बड़ी दुःख की पुकार हूँ
- बहादुर शाह ज़फ़र
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