(23)
युग की उदासी
अकारण ही मैं नही उदास।
अपने में ही सिकुड़ सिमट कर
जी लेने का बीता अवसर
जब अपना सुख दुख था अपना ही उछाह उच्छ्वास।
अकारण ही मैं नहीं उदास।
अब अपनी सीमा में बँधकर
देश काल से बचना दुष्कर
यह सम्भव था कभी नही पर सम्भव था विश्वास।
अकारण ही मैं नही उदास।
एक सुनहले चित्र पटल पर
दाग़ लगाने में है तत्पर
अपने उच्छृंखल हाथों से उत्पाती इतिहास।
अकारण ही मैं नही उदास।
- हरिवंश राय बच्चन
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