(1)
मुझको भी तरकीब सिखा यार जुलाहे
अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोइ तागा टूट गया या खत्म हुआ
फिर से बांध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमे
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गांठ गिराह बुन्तर की
देख नहीं सकता कोई
मैनें तो इक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिराहे
साफ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे
- गुलज़ार
**********************************************************
No comments:
Post a Comment