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अमृता प्रीतम - चुप की साज़िश

(12)

चुप की साज़िश


रात ऊँघ रही है...
किसी ने इन्सान की
छाती में सेंध लगाई है
हर चोरी से भयानक
यह सपनों की चोरी है।

चोरों के निशान —
हर देश के हर शहर की
हर सड़क पर बैठे हैं
पर कोई आँख देखती नहीं,
न चौंकती है।
सिर्फ़ एक कुत्ते की तरह
एक ज़ंजीर से बँधी
किसी वक़्त किसी की
कोई नज़्म भौंकती है।

   - अमृता प्रीतम

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