(15)
कृष्ण की चेतावनी
वर्षों तक वन में घूम घूम
बाधा विघ्नों को चूम चूम
सह धूप घाम पानी पत्थर
पांडव आये कुछ और निखर
सौभाग्य न सब दिन होता है
देखें आगे क्या होता है
मैत्री की राह दिखाने को
सब को सुमार्ग पर लाने को
दुर्योधन को समझाने को
भीषण विध्वंस बचाने को
भगवान हस्तिनापुर आए
पांडव का संदेशा लाये
दो न्याय अगर तो आधा दो
पर इसमें भी यदि बाधा हो
तो दे दो केवल पाँच ग्राम
रखो अपनी धरती तमाम
हम वहीँ खुशी से खायेंगे
परिजन पे असी ना उठाएंगे
दुर्योधन वह भी दे ना सका
आशीष समाज की न ले सका
उलटे हरि को बाँधने चला
जो था असाध्य साधने चला
जब नाश मनुज पर छाता है
पहले विवेक मर जाता है
हरि ने भीषण हुँकार किया
अपना स्वरूप विस्तार किया
डगमग डगमग दिग्गज डोले
भगवान कुपित हो कर बोले
जंजीर बढ़ा अब साध मुझे
हां हां दुर्योधन बाँध मुझे
ये देख गगन मुझमे लय है
ये देख पवन मुझमे लय है
मुझमे विलीन झनकार सकल
मुझमे लय है संसार सकल
अमरत्व फूलता है मुझमे
संहार झूलता है मुझमे
भूतल अटल पाताल देख
गत और अनागत काल देख
ये देख जगत का आदि सृजन
ये देख महाभारत का रन
मृतकों से पटी हुई भू है
पहचान कहाँ इसमें तू है
अंबर का कुंतल जाल देख
पद के नीचे पाताल देख
मुट्ठी में तीनो काल देख
मेरा स्वरूप विकराल देख
सब जन्म मुझी से पाते हैं
फिर लौट मुझी में आते हैं
जिह्वा से काढती ज्वाला सघन
साँसों से पाता जन्म पवन
पर जाती मेरी दृष्टि जिधर
हंसने लगती है सृष्टि उधर
मैं जभी मूंदता हूँ लोचन
छा जाता चारो और मरण
बाँधने मुझे तू आया है
जंजीर बड़ी क्या लाया है
यदि मुझे बांधना चाहे मन
पहले तू बाँध अनंत गगन
सूने को साध ना सकता है
वो मुझे बाँध कब सकता है
हित वचन नहीं तुने माना
मैत्री का मूल्य न पहचाना
तो ले अब मैं भी जाता हूँ
अंतिम संकल्प सुनाता हूँ
याचना नहीं अब रण होगा
जीवन जय या की मरण होगा
टकरायेंगे नक्षत्र निखर
बरसेगी भू पर वह्नी प्रखर
फन शेषनाग का डोलेगा
विकराल काल मुंह खोलेगा
दुर्योधन रण ऐसा होगा
फिर कभी नहीं जैसा होगा
भाई पर भाई टूटेंगे
विष बाण बूँद से छूटेंगे
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे
वायस शृगाल सुख लूटेंगे
आखिर तू भूशायी होगा
हिंसा का पर्दायी होगा
थी सभा सन्न, सब लोग डरे
चुप थे या थे बेहोश पड़े
केवल दो नर न अघाते थे
ध्रीत्रास्त्र विदुर सुख पाते थे
कर जोड़ खरे प्रमुदित निर्भय
दोनों पुकारते थे जय, जय
- रामधारी सिंह 'दिनकर'
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Hi thenk you
ReplyDeleteधृतराष्ट्र और विदुर दोनो के सुख का क्या कारण था ?
ReplyDeleteIshwar k akhand anant Swaroop ka darshan kr lena, jeewan m isse bda sukh kya hoga?
Deletethats also i was thinking great to know
DeleteVidur - indicates the person who know all and worried about the situation and look forward for solution and Dhritarashtra indicates towards the person those who knew that they are getting led to worry full situation and still ignoring the same and looking personal benefits inbetween and are living in illusion.
DeleteIs book ka nam please
ReplyDeleteRashmirathi
DeleteKrishna ki chetavani is the title of poem
DeleteRashmirathi by Ramdhari Singh Dinakar
DeleteRashmirathi
DeleteMohit
ReplyDeleteMujhe iski meaning chahiye
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण मित्रों 🚩🙏😊
ReplyDeleteSir I read it is so much of best written I love these you are best sir
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