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सोहनलाल द्विवेदी – गिरिराज

(1)
 

गिरिराज

 

यह है भारत का शुभ्र मुकुट
यह है भारत का उच्च भाल,

सामने अचल जो खड़ा हुआ

हिमगिरि विशाल, गिरिवर विशाल!
 

कितना उज्ज्वल, कितना शीतल  

कितना सुन्दर इसका स्वरूप?  

है चूम रहा गगनांगन को   

इसका उन्नत मस्तक अनूप! 

 

है मानसरोवर यहीं कहीं 

जिसमें मोती चुगते मराल,

हैं यहीं कहीं कैलास शिखर 

जिसमें रहते शंकर कृपाल!
 

युग युग से यह है अचल खड़ा 

बनकर स्वदेश का शुभ्र छत्र!  

इसके अँचल में बहती हैं 

गंगा सजकर नवफूल पत्र!
 

इस जगती में जितने गिरि हैं 

सब झुक करते इसको प्रणाम,  

गिरिराज यही, नगराज यही 

जननी का गौरव गर्वधाम!
 

इस पार हमारा भारत है

उस पार चीनजापान देश  

मध्यस्थ खड़ा है दोनों में   

एशिया खंड का यह नगेश!

 

-   सोहनलाल द्विवेदी

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6 comments:

  1. Very nice 👍

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  2. मुझे यह कविता बहुत अच्छी लगती है ।

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  3. बहुत अच्छी लगती है ये बचपन की कविता

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  4. Es Kavita ka answer dijiye

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  5. Iaska bhavart

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