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द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी - उठो धरा के अमर सपूतो

(3)

उठो धरा के अमर सपूतो



उठो धरा के अमर सपूतो

पुनः नया निर्माण करो ।

जन-जन के जीवन में फिर से

नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो ।


नया प्रात है, नई बात है,

नई किरण है, ज्योति नई ।

नई उमंगें, नई तरंगे,

नई आस है, साँस नई ।

युग-युग के मुरझे सुमनों में,

नई-नई मुसकान भरो ।



डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ

नए स्वरों में गाते हैं ।

गुन-गुन-गुन-गुन करते भौंरे

मस्त हुए मँडराते हैं ।

नवयुग की नूतन वीणा में

नया राग, नवगान भरो ।



कली-कली खिल रही इधर

वह फूल-फूल मुस्काया है ।

धरती माँ की आज हो रही

नई सुनहरी काया है ।

नूतन मंगलमयी ध्वनियों से

गुंजित जग-उद्यान करो ।



सरस्वती का पावन मंदिर

यह संपत्ति तुम्हारी है ।

तुम में से हर बालक इसका

रक्षक और पुजारी है ।

शत-शत दीपक जला ज्ञान के

नवयुग का आह्वान करो ।



उठो धरा के अमर सपूतो,

पुनः नया निर्माण करो ।

-          द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

       
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