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सर्वेश्वरदयाल सक्सेना - लीक पर वे चलें जिनके..

(1)

लीक पर वे चलें जिनके..

 
लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं

हमें तो जो हमारी यात्रा से बने

ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं
 
साक्षी हों राह रोके खड़े
पीले बाँस के झुरमुट

कि उनमें गा रही है जो हवा

उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं
 
शेष जो भी हैं-
वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ

गर्व से आकाश थामे खड़े

ताड़ के ये पेड़
;
हिलती क्षितिज की झालरें

झूमती हर डाल पर बैठी

फलों से मारती

खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा
;
गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ
,
वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले
,
नदी बनने की प्रतीक्षा में
, कहीं नीचे
शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल
;
सभी
, बन रहा है कहीं जो विश्वास
जो संकल्प हममें

बस उसी के ही सहारें हैं ।
 
लीक पर वें चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं
,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने

ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं ।

- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 

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