(10)
हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं
बेफ़ायदा अलम नहीं, बेकार ग़म नहीं
बेफ़ायदा अलम नहीं, बेकार ग़म नहीं
तौफ़ीक़ दे ख़ुदा तो ये ने'आमत भी कम नहीं
मेरी ज़ुबाँ पे शिकवा-ए-अह्ल-ए-सितम नहीं
मेरी ज़ुबाँ पे शिकवा-ए-अह्ल-ए-सितम नहीं
मुझको जगा दिया यही एहसान कम नहीं
या रब! हुजूम-ए-दर्द को दे और वुस'अतें
या रब! हुजूम-ए-दर्द को दे और वुस'अतें
दामन तो क्या अभी मेरी आँखें भी नम नहीं
ज़ाहिद कुछ और हो न हो मयख़ाने में मगर
ज़ाहिद कुछ और हो न हो मयख़ाने में मगर
क्या कम ये है कि शिकवा-ए-दैर-ओ-हरम नहीं
शिकवा तो एक छेड़ है लेकिन हक़ीक़तन
तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं
मर्ग-ए-ज़िगर पे क्यों तेरी आँखें हैं अश्क-रेज़
मर्ग-ए-ज़िगर पे क्यों तेरी आँखें हैं अश्क-रेज़
इक सानिहा सही मगर इतनी अहम नहीं
- जिगर मुरादाबादी
* अलम = sorrow
* तौफ़ीक़ = divine strength
* ने'आमत = divine blessing
* वुस'अतें = spread out
* सानिहा = incident;
* अहम = important
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