(4)
आबलापा कोई इस दश्त में
आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा|
वर्ना आँधी में दिया किस ने जलाया होगा |
ज़र्रे-ज़र्रे पे जड़े होंगे कुँवारे सजदे ,
एक-एक बुत को ख़ुदा उस ने बनाया होगा |
प्यास जलते हुए काँटों की बुझाई होगी ,
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा |
मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर ,
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा |
ख़ून के छींटे कहीं पोंछ न लें रेह्रों से ,
किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा |
वर्ना आँधी में दिया किस ने जलाया होगा |
ज़र्रे-ज़र्रे पे जड़े होंगे कुँवारे सजदे ,
एक-एक बुत को ख़ुदा उस ने बनाया होगा |
प्यास जलते हुए काँटों की बुझाई होगी ,
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा |
मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर ,
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा |
ख़ून के छींटे कहीं पोंछ न लें रेह्रों से ,
किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा |
- मीना कुमारी
* आबलापा = जिसके पैरों में छाले पड़े हों
* दश्त = जंगल
* आबलापा = जिसके पैरों में छाले पड़े हों
* दश्त = जंगल
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