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निदा फ़ाज़ली - लफ़्ज़ों का पुल

(24)

लफ़्ज़ों का पुल 
 
मस्जिद का गुम्बद सूना है
मंदिर की घंटी खामोश

जुज्दानो मे लिपटे सारे आदर्शों को

दीमक कब की चाट चुकी है

रंग
 !
गुलाबी

नीले

पीले कहीं नहीं हैं

तुम उस जानिब

मैं इस जानिब

बीच में मीलों गहरा गार

लफ़्ज़ों का पुल टूट चुका है

तुम भी तनहा

मैं भी तनहा।

निदा फ़ाज़ली  

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