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सूरदास - मैया री मैं चंद लहौंगौ

(10)

मैया री मैं चंद लहौंगौ 
 
मैया री मैं चंद लहौंगौ ।
कहा करौं जलपुट भीतर कौ, बाहर ब्यौंकि गहौंगौ ॥
यह तौ झलमलात झकझोरत, कैसैं कै जु लहौंगौ ?
वह तौ निपट निकटहीं देखत ,बरज्यौ हौं न रहौंगौ ॥
तुम्हरौ प्रेम प्रगट मैं जान्यौ, बौराऐँ न बहौंगौ ।
सूरस्याम कहै कर गहि ल्याऊँ ससि-तन-दाप दहौंगौ ॥

 - सूरदास

भावार्थ :--
 श्याम ने कहा :- `मैया! मैं चन्द्रमा को पा लूँगा । इस पानी के भीतर के चन्द्रमा को मैं क्या करूँगा, मैं तो बाहर वाले को उछलकर पकड़ूँगा । यह तो पकड़ने का प्रयत्न करने पर झलमल-झलमल करता है, भला, इसे मैं कैसे पकड़ सकूँगा । वह तो अत्यन्त पास दिखायी पड़ता है, तुम्हारे रोकने से अब रुकूँगा नहीं । तुम्हारे प्रेम को तो मैंने प्रत्यक्ष समझ लिया (कि मुझे यह चन्द्रमा भी नहीं देती हो) अब तुम्हारे बहकाने से बहकूँगा नहीं ।' सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर (हठपूर्वक) कह रहे हैं -`मैं चन्द्रमा को अपने हाथों पकड़ लाऊँगा और उसका जो दूर रहने का बड़ा घमंड है, उसे नष्ट कर दूँगा ।'

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