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फ़िराक़ गोरखपुरी - यह नर्म नर्म हवा

( 3 )

यह नर्म नर्म हवा


यह नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चिराग़
तेरे ख़्याल की खुश्बू से बस रहे हैं दिमाग़


दिलों को तेरे तबस्सुम की याद यूं आई
कि जगमगा उठें जिस तरह मंदिरों में चिराग


तमाम शोला-ए-गुल है तमाम मौज-ए-बहार
कि ता-हद-ए-निगाह-ए-शौक़ लहलहाते हैं बाग़


'नई ज़मीं, नया आस्मां, नई दुनिया'
सुना तो है कि मोहब्बत को इन दिनों है फ़राग


दिलों में दाग़-ए-मोहब्बत का अब यह आलम है
कि जैसे नींद में डूबे हों पिछली रात चिराग़


फिराक़ बज़्म-ए-चिरागां है महफ़िल-ए-रिन्दां
सजे हैं पिघली हुई आग से छलकते अयाग़


 - फ़िराक़ गोरखपुरी

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