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क़तील शिफाई - ये मोजज़ा भी मोहब्बत

( 3 )


ये मोजज़ा भी मोहब्बत


ये मोजज़ा भी मोहब्बत कभी दिखाए मुझे
कि संग तुझ पे गिरे और ज़ख्म आये मुझे


वो मेरा दोस्त है सारे जहां को है मालूम
दग़ा करे वो किसी से, तो शर्म आये मुझे


वो मेहरबान है तो इकरार क्यूँ नहीं करता
वो बदगुमां है तो सौ बार आजमाए मुझे


वही तो सब से ज्यादा है नुक्ता-चीं मेरा
जो मुस्कुरा के हमेशा गले लगाए मुझे


बरंग-ए-ऊद मिलेगी उसे मेरी खुश्बू
वो जब भी चाहे बडे शौक़ से जलाए मुझे

मैं अपनी जात में नीलाम हो रहा हूँ
गम-ए-हयात से कह दो खरीद लाये मुझे


 - क़तील शिफाई

मोजज़ा = miracle,
संग = stone]
बरंग-ए-ऊद = an incense, fragrant smell

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