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अहमद फ़राज़ - रंजिश ही सही

( 1 )

रंजिश ही सही

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही, फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है, तो ज़माने के लिए आ

एक उमर से हूँ लज्ज़त-ए-गिरया से भी महरूम
ए राहत-ए-जां मुझको रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
यह आखिरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ

- अहमद फ़राज़

शब्दार्थ:

1.    पिन्दार-ए-मोहब्बत  = प्रेम का गर्व
2.    मरासिम =  प्रेम-व्यवहार
3.    रस्मों-रहे =  सांसारिक शिष्टाचार
4.    लज़्ज़त-ए-गिरिया = रोने का स्वाद
5.    महरूम = वंचित
6.    राहत-ए-जाँ  = प्राणाधार
7.    दिल-ए-ख़ुशफ़हम  = किसी की ओर से अच्छा विचार रखने वाला मन

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