(15)
तुम गये चितचोर्
तुम गये चितचोर्!
स्वप्न्-सज्जित प्यार मेरा,
कल्पना का तार मेरा,
एक क्षण मे मधुर निषठुर्
तुम गये झकझोर्!एक क्षण मे मधुर निषठुर्
हाय! जाना ही तुम्हे था,
यो' रुलाना ही तुम्हे था,
तुम गये प्रिय, पर गये क्यो' नही' ह्रदय मरोर्!
तुम गये चितचोर्!
लुट गया सर्वस्व मेरा,
नयन मे' इतना अन्धेरा,
घोर निशि मे' भी चमकती है नयन की कोर्!
तुम गये चितचोर्!
- गोपालदास ' नीरज '
***************************************************************
No comments:
Post a Comment