(7)
दिल गया रौनके हयात गई
दिल गया रौनके हयात गई
दिल गया रौनके हयात गई ।
ग़म गया सारी कायनात गई ।।
दिल धड़कते ही फिर गई वो नज़र,
लब तक आई न थी के बात गई ।
उनके बहलाए भी न बहला दिल,
गएगां सइये-इल्तफ़ात गई ।
मर्गे आशिक़ तो कुछ नहीं लेकिन,
इक मसीहा-नफ़स की बात गई ।
हाए सरशरायां जवानी की,
आँख झपकी ही थी के रात गई ।
नहीं मिलता मिज़ाजे-दिल हमसे,
ग़ालिबन दूर तक ये बात गई ।
क़ैदे-हस्ती से कब निजात ‘जिगर’
मौत आई अगर हयात गई ।
-जिगर ‘ मुरादाबादी ’
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