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गोपालदास "नीरज" - इन्सान बनाया जाए

(3)

 

 इन्सान बनाया जाए

 

अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इन्सान को, इन्सान बनाया जाए


आग बहती है यहाँ, गंगा में, झेलम में भी
कोई बतलाए, कहाँ जाकर नहाया जाए


मेरा मकसद है के महफिल रहे रोशन यूँही
खून चाहे मेरा, दीपों में जलाया जाए


मेरे दुख-दर्द का, तुझपर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी ना खाया जाए


जिस्म दो होके भी, दिल एक हो अपने ऐसे
मेरा आँसू, तेरी पलकों से उठाया जाए


गीत गुमसुम है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
ऐसे माहौल में,‘नीरजको बुलाया जाए

- गोपालदास "नीरज"


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