(2)
पिल्ला
पिल्ला
पिल्ला बैठा कार में, मानुष ढोवें बोझ
भेद न इसका मिल सका, बहुत लगाई खोज
बहुत लगाई खोज, रोज़ साबुन से न्हाता
देवी जी के हाथ, दूध से रोटी खाता
कहँ ‘काका’ कवि, माँगत हूँ वर चिल्ला-चिल्ला
पुनर्जन्म में प्रभो! बनाना हमको पिल्ला
- काका ‘ हाथरसी ’
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