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अमीर खुसरो -- मुकरियाँ


  (1)

मुकरियाँ

रात समय वह मेरे आवे। भोर भये वह घर उठि जावे॥
यह अचरज है सबसे न्यारा। ऐ सखि साजन? ना सखि तारा॥


नंगे पाँव फिरन नहिं देत। पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत॥
पाँव का चूमा लेत निपूता। ऐ सखि साजन? ना सखि जूता॥


वह आवे तब शादी होय। उस बिन दूजा और न कोय॥
मीठे लागें वाके बोल। ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल॥


जब माँगू तब जल भरि लावे। मेरे मन की तपन बुझावे॥
मन का भारी तन का छोटा। ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा॥


बेर-बेर सोवतहिं जगावे। ना जागूँ तो काटे खावे॥
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की। ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी॥


अति सुरंग है रंग रंगीले। है गुणवंत बहुत चटकीलो॥
राम भजन बिन कभी न सोता। क्यों सखि साजन? ना सखि तोता॥


अर्ध निशा वह आया भौन। सुंदरता बरने कवि कौन॥
निरखत ही मन भयो अनंद। क्यों सखि साजन? ना सखि चंद॥


शोभा सदा बढ़ावन हारा। आँखिन से छिन होत न न्यारा॥
आठ पहर मेरो मनरंजन। क्यों सखि साजन? ना सखि अंजन॥


जीवन सब जग जासों कहै। वा बिनु नेक न धीरज रहै॥
हरै छिनक में हिय की पीर। क्यों सखि साजन? ना सखि नीर॥


बिन आये सबहीं सुख भूले। आये ते अँग-अँग सब फूले॥
सीरी भई लगावत छाती। क्यों सखि साजन? ना सखि पाति॥


 लिपट लिपट के वा के सोई । छाती से छाती लगा के रोई ॥
 दांत से दांत बजे तो ताड़ा । ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा ॥


ऊंची अटारी पलंग बिछायो । मैं सोई मेरे सिर पर आयो ॥
खुल गई अंखियां भयी आनंद । ऐ सखि साजन? ना सखि चांद ॥


आप हिले और मोहे हिलाए । वा का हिलना मोए मन भाए ॥
हिल हिल के वो हुआ निसंखा । ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा ॥


सगरी रैन छतियां पर राख । रूप रंग सब वा का चाख ॥
भोर भई जब दिया उतार । ऐ सखी साजन? ना सखि हार ॥


पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो । जब उतरयो तो पसीनो आयो ॥
सहम गई नहीं सकी पुकार । ऐ सखि साजन? ना सखि बुखार ॥


सेज पड़ी मोरे आंखों आए । डाल सेज मोहे मजा दिखाए ॥
किस से कहूं अब मजा में अपना । ऐ सखि साजन? ना सखि सपना ॥


बखत बखत मोए वा की आस । रात दिना ऊ रहत मो पास ॥
मेरे मन को सब करत है काम । ऐ सखि साजन? ना सखि राम ॥


सरब सलोना सब गुन नीका । वा बिन सब जग लागे फीका ॥
वा के सर पर होवे कोन । ऐ सखि ‘साजन’ना सखि ,लोन(नमक) ॥


सगरी रैन मिही संग जागा । भोर भई तब बिछुड़न लागा ॥
उसके बिछुड़त फाटे हिया’। ए सखि ‘साजन’ ना,सखि दिया(दीपक) ॥



- अमीर खुसरो



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