(10)
मापदण्ड बदलो
मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम ,
जुए के पत्ते-सा
मैं अभी अनिश्चित हूँ ।
मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं ,
कोपलें उग रही हैं ,
पत्तियाँ झड़ रही हैं ,
मैं नया बनने के लिए खराद पर चढ़ रहा हूँ ,
लड़ता हुआ
नई राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ ।
अगर इस लड़ाई में मेरी साँसें उखड़ गईं ,
मेरे बाज़ू टूट गए ,
मेरे चरणों में आँधियों के समूह ठहर गए ,
मेरे अधरों पर तरंगाकुल संगीत जम गया ,
या मेरे माथे पर शर्म की लकीरें खिंच गईं ,
तो मुझे पराजित मत मानना ,
समझना –
तब और भी बड़े पैमाने पर
मेरे हृदय में असन्तोष उबल रहा होगा ,
मेरी उम्मीदों के सैनिकों की पराजित पंक्तियाँ
एक बार और
शक्ति आज़माने को
धूल में खो जाने या कुछ हो जाने को
मचल रही होंगी ।
एक और अवसर की प्रतीक्षा में
मन की क़न्दीलें जल रही होंगी ।
ये जो फफोले तलुओं मे दीख रहे हैं
ये मुझको उकसाते हैं ।
पिण्डलियों की उभरी हुई नसें
मुझ पर व्यंग्य करती हैं ।
मुँह पर पड़ी हुई यौवन की झुर्रियाँ
क़सम देती हैं ।
कुछ हो अब , तय है –
मुझको आशंकाओं पर क़ाबू पाना है ,
पत्थरों के सीने में
प्रतिध्वनि जगाते हुए
परिचित उन राहों में एक बार
विजय-गीत गाते हुए जाना है –
जिनमें मैं हार चुका हूँ ।
मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम
मैं अभी अनिश्चित हूँ ।
यह मापदण्ड बदलो तुम ,
जुए के पत्ते-सा
मैं अभी अनिश्चित हूँ ।
मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं ,
कोपलें उग रही हैं ,
पत्तियाँ झड़ रही हैं ,
मैं नया बनने के लिए खराद पर चढ़ रहा हूँ ,
लड़ता हुआ
नई राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ ।
अगर इस लड़ाई में मेरी साँसें उखड़ गईं ,
मेरे बाज़ू टूट गए ,
मेरे चरणों में आँधियों के समूह ठहर गए ,
मेरे अधरों पर तरंगाकुल संगीत जम गया ,
या मेरे माथे पर शर्म की लकीरें खिंच गईं ,
तो मुझे पराजित मत मानना ,
समझना –
तब और भी बड़े पैमाने पर
मेरे हृदय में असन्तोष उबल रहा होगा ,
मेरी उम्मीदों के सैनिकों की पराजित पंक्तियाँ
एक बार और
शक्ति आज़माने को
धूल में खो जाने या कुछ हो जाने को
मचल रही होंगी ।
एक और अवसर की प्रतीक्षा में
मन की क़न्दीलें जल रही होंगी ।
ये जो फफोले तलुओं मे दीख रहे हैं
ये मुझको उकसाते हैं ।
पिण्डलियों की उभरी हुई नसें
मुझ पर व्यंग्य करती हैं ।
मुँह पर पड़ी हुई यौवन की झुर्रियाँ
क़सम देती हैं ।
कुछ हो अब , तय है –
मुझको आशंकाओं पर क़ाबू पाना है ,
पत्थरों के सीने में
प्रतिध्वनि जगाते हुए
परिचित उन राहों में एक बार
विजय-गीत गाते हुए जाना है –
जिनमें मैं हार चुका हूँ ।
मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम
मैं अभी अनिश्चित हूँ ।
No comments:
Post a Comment