( 4 )
देख तो दिल कि जाँ से
देख तो दिल कि जाँ से उठता है
यह धुवाँ सा कहाँ से उठता है
गोर किस दिलजले की है यह फलक
शोला एक सुबह याँ से उठता है
नाला सर खींचता है जब मेरा
शोर एक आसमान से उठता है
लड़ती ही उसकी चश्म-ए-शोख जहाँ
एक आशोब वां से उठता है
बैठने कौन दे है फिर उसको
जो तेरे आस्तां से उठता है
इश्क़ एक मीर भारी पत्थर है
कब यह तुझ नातवां से उठता है
- मीर तकी मीर
* गोर = grave
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