( 2 )
किसी का यूं तो हुआ
किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न-ओ-इश्क़ तो धोका है सब, मगर फिर भी
ये हुस्न-ओ-इश्क़ तो धोका है सब, मगर फिर भी
हजार बार ज़माना इधर से गुजरा
नई नई है मगर कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी
नई नई है मगर कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी
खुशा इशारा-ए-पैहम, जेह-ए-सुकूत नज़र
दराज़ होके फ़साना है मुख्तसर फिर भी
झपक रही हैं ज़मान-ओ-मकाँ की भी आँखें
मगर है काफ्ला आमादा-ए-सफर फिर भी
मगर है काफ्ला आमादा-ए-सफर फिर भी
पलट रहे हैं गरीबुल वतन, पलटना था
वोः कूचा रूकश-ए-जन्नत हो, घर है घर, फिर भी
वोः कूचा रूकश-ए-जन्नत हो, घर है घर, फिर भी
तेरी निगाह से बचने में उम्र गुजरी है
उतर गया रग-ए- जां में ये नश्तर फिर भी
उतर गया रग-ए- जां में ये नश्तर फिर भी
- फिराक गोरखपुरी
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