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अहमद फ़राज़ - क्यूँ तबीअत कहीं

( 3 )

क्यूँ तबीअत कहीं

क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं
दोस्ती तो उदास करती नहीं

हम हमेशा के सैर-चश्म सही
तुझ को देखें तो आँख भरती नहीं


शब-ए-हिज्राँ भी रोज़-ए-बद की तरह
कट तो जाती है पर गुज़रती नहीं


ये मोहब्बत है, सुन, ज़माने, सुन!
इतनी आसानियों से मरती नहीं


जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़
जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं

 - अहमद फ़राज़

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