( 3 )
हम हैं मत'अ-ए-कूचा-ओ-बाज़ार
हम हैं मत'अ-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह
उठती है हर निगाह ख़रीदार की तरह
उठती है हर निगाह ख़रीदार की तरह
इस कूए तिशनगी में बोहत है कि एक जाम
हाथ आ गया है दौलत-ए-बेदार की तरह
हाथ आ गया है दौलत-ए-बेदार की तरह
दिल तो कहीं है मगर दिल के आसपास
फिरती है कोई शै निगाह-ए-यार की तरह
फिरती है कोई शै निगाह-ए-यार की तरह
सीधी है राह-ए-शौक़ पर यूं ही कहीं कहीं
ख़म हो गई है गेसू-ए-दिलदार की तरह
ख़म हो गई है गेसू-ए-दिलदार की तरह
मजरूह लिख रहे हैं वोह अहल-ए-वफ़ा का नाम
हम भी खड़े हुए हैं गुनाहगार की तरह
हम भी खड़े हुए हैं गुनाहगार की तरह
- मजरूह सुलतानपुरी
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