( 1 )
रंजिश ही सही
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
पहले से मरासिम न सही, फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है, तो ज़माने के लिए आ
एक उमर से हूँ लज्ज़त-ए-गिरया से भी महरूम
ए राहत-ए-जां मुझको रुलाने के लिए आ
अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
यह आखिरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
पहले से मरासिम न सही, फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है, तो ज़माने के लिए आ
एक उमर से हूँ लज्ज़त-ए-गिरया से भी महरूम
ए राहत-ए-जां मुझको रुलाने के लिए आ
अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
यह आखिरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ
- अहमद फ़राज़
शब्दार्थ:
1. पिन्दार-ए-मोहब्बत = प्रेम का गर्व
2. मरासिम = प्रेम-व्यवहार
3. रस्मों-रहे = सांसारिक शिष्टाचार
4. लज़्ज़त-ए-गिरिया = रोने का स्वाद
5. महरूम = वंचित
6. राहत-ए-जाँ = प्राणाधार
7. दिल-ए-ख़ुशफ़हम = किसी की ओर से अच्छा विचार रखने वाला मन
2. मरासिम = प्रेम-व्यवहार
3. रस्मों-रहे = सांसारिक शिष्टाचार
4. लज़्ज़त-ए-गिरिया = रोने का स्वाद
5. महरूम = वंचित
6. राहत-ए-जाँ = प्राणाधार
7. दिल-ए-ख़ुशफ़हम = किसी की ओर से अच्छा विचार रखने वाला मन
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