( 2 )
दिल-ए-पुर-खूं की
दिल-ए-पुर-खूं की एक गुलाबी से
उम्र भर हम रहे शराबी से
जी डहा जाये है सहर से आह
रात गुजरेगी किस खराबी से
खिलना कम कम कली ने सीखा
उसकी आंखों की नीम-ख्वाबी से
बुर्का उठते ही चाँद सा निकला
दाग हूँ उसकी बे-हिजाबी से
काम थे इश्क़ में बोहत से मीर
हम ही फारिग हुए शताबी से
- मीर तकी मीर
उम्र भर हम रहे शराबी से
जी डहा जाये है सहर से आह
रात गुजरेगी किस खराबी से
खिलना कम कम कली ने सीखा
उसकी आंखों की नीम-ख्वाबी से
बुर्का उठते ही चाँद सा निकला
दाग हूँ उसकी बे-हिजाबी से
काम थे इश्क़ में बोहत से मीर
हम ही फारिग हुए शताबी से
- मीर तकी मीर
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