(1)
लगता नहीं है दिल मेरा
लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में
किसकी बनी है आलम-ए-ना-पायदार में
किसकी बनी है आलम-ए-ना-पायदार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दागदार में
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दागदार में
बुलबुल को बाग़बान से न सैय्याद से गिला
किस्मत में कैद लिखी थी मौसम-ए-बहार में
किस्मत में कैद लिखी थी मौसम-ए-बहार में
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाए थे चार दिन
दो आरजू में कट गए, दो इंतज़ार में
दो आरजू में कट गए, दो इंतज़ार में
कितना है बदनसीब ज़फर दफ़न के लिए
दो गज ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
दो गज ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
- बहादुर शाह ज़फर
* The last Mughal emperor Bahadur Shah 'Zafar' was an accomplished poet. After capturing Delhi in 1857, the British exiled him to Burma's capital Rangoon [Yangon].
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you missed the stanza
ReplyDeleteकाँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ
ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में