(13)
अंखियाँ हरि दरसन की प्यासी।
अंखियाँ हरि दरसन की प्यासी।
देख्यौ चाहति कमलनैन कौ , निसि-दिन रहति उदासी।।
आए ऊधै फिरि गए आँगन ,डारि गए गर फांसी।
केसरि तिलक मोतिन की माला , वृन्दावन के बासी।।
काहू के मन को कोउ न जानत , लोगन के मन हांसी।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौ , करवत लैहौं कासी।।
देख्यौ चाहति कमलनैन कौ , निसि-दिन रहति उदासी।।
आए ऊधै फिरि गए आँगन ,डारि गए गर फांसी।
केसरि तिलक मोतिन की माला , वृन्दावन के बासी।।
काहू के मन को कोउ न जानत , लोगन के मन हांसी।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौ , करवत लैहौं कासी।।
- सूरदास
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